उज्जैन में रावण की पूजा:25 गांव के लोग होंगे शामिल, पूजन के बाद रावण दहन भी होगा

उज्जैन से करीब 20 किमी दूर बड़नगर रोड पर चिकली गांव में आज रावण की पूजा की जाती है। यहां हर साल दशहरे पर रावण की पूजा करने की परंपरा है। गांव में रावण का मंदिर भी बनाया जा रहा है। इसके लिए ग्रामीणों ने 5 लाख रुपए इकट्ठा किए हैं। इसमें मुस्लिम समुदाय के लोगों ने भी मदद की है।

गांव वालों का मानना है कि यहां पूजा की परंपरा आज से नहीं बल्कि सदियों पुरानी है। कोई नहीं जानता कि रावण का मंदिर कब और किसने बनाया। लेकिन दशहरा पर रावण के पूजन का सिलसिला आज भी चलता है। गांव में रहने वाले वीरेंद्र बताते हैं हमारे पूर्वजों को हमने रावण की पूजा करते देखा और अब हम भी इसी परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं। गांव के ही केसर सिंह ने बताया कि एक बार ग्रामीण रावण की पूजा करना भूल गए थे इसके बाद गांव में भीषण आग लग गई और काफी नुकसान भी हुआ था। जिसके बाद हमेशा दशहरा पर रावण की पूजा का विधान है।

ग्रामीण बताते हैं कि कई लोग अन्य गांवों से अपनी अपनी मुराद लेकर भी रावण की पूजा के लिए आते हैं। चिकली गांव में ग्रामीण दशहरा के पर्व पर शाम को रावण दहन भी करते हैं। यहां चैत्र माह में आने वाली नवरात्रि के आखिरी दिन नवमीं और दशहरा पर मेला भी लगता है।

5 लाख जमा किए रावण के मंदिर के लिए –

रावण का मंदिर वर्षों पुराना होने के चलते अब ग्रामीण रावण के मंदिर का जीर्णोद्धार कर रहे हैं। बीते दो वर्षों से कोरोना के चलते गांव में लगने वाले मेले की राशि और ग्रामीणों द्वारा इकट्‌ठा की गई 5 लाख की राशि से अब रावण के मंदिर का जीर्णोद्धार किया जा रहा है।

25 गांव के लोग आते है रावण दर्शन को –

दशहरा के एक दिन पहले मंदिर में सजावट की जाती है। आसपास के 25 गांव के लोग यहां पर दर्शन करने आते हैं। खास बात ये कि रावण के पूजन में मुस्लिम समाज भी भागीदारी करता है। मान्यता है कि रावण के मंदिर में जो भी भक्त अपनी मन्नत मांगता है उसकी हर मनोकामना पूरी होती है। इसी के चलते रावण के इस मंदिर में न सिर्फ उज्जैन के बल्कि गुजरात, राजस्थान के लोग भी दर्शन के लिए पहुंचते हैं।

अंतरराष्ट्रीय लंकेश परिषद भी करता है पूजन –

उज्जैन क्षीरसागर क्षेत्र में रहने वाले पंडित सुनील शर्मा पिछले 23 साल से दशहरे पर रावण पूजा और महाआरती करते आ रहे हैं। पिछले कुछ सालों में अब युवा भी इनसे जुड़ने लगे हैं। शर्मा अंतरराष्ट्रीय लंकेश परिषद का गठन कर चुके हैं। दशहरा पर रावण के फोटो की आरती कर भजन भी गाए जाते हैं। शर्मा का मानना है कि रावण जैसे महाविद्वान ब्राह्मण का इस तरह से दहन करना किसी शास्त्र में नहीं लिखा। रावण परम ज्ञानी और त्रिलोक विजेता पराक्रमी थे।

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